Tuesday, February 03, 2009

ek khel bacphan ka

बचपन मैं माँ नीचे बैठ कर रोटियाँ बेल्तीं थी
और मैं उनके कंधे पकड़ कर खड़ा हो जाता था
बेलन आगे जाता
मैं आगे
बेलन पीछे आता
मैं भी
एक छोटा लोया मुझे भी दे दिया करती थीं कभी कभी
खेलने के लिए
सादा सा खेल था
मैं था
माँ थी
और रोटियाँ

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