Sunday, April 15, 2007

मंजिलें

हर मंजिल पहुंच हमने कहा
कुछ मकाम और हैं
अभी यह पाना है, यह बनाना है
कभी कभी यूं लगता है
यह हम मंजिलें बना रहे हैं
या मंजिलें हमे बना रही हैं ?
इतना हमे पता है
इमारतों के इस जंगल मैं
हमारी ईमारत बड़ी हो रही है
तुम्हारी झोपड़ी कि ऐसी कि तैसी
हमारी ईमारतें खडी हो रही है

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